वैदिक सभ्यता या वैदिक काल
- वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है. वेदों की रचना उस दौरान हुई थी. भारत में एक नई सभ्यता का आविर्भाव हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद हुआ. वैदिक सभ्यता का नाम इस सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेदों के आधार परदिया गया.
- सभ्यता का विकास हुआ उसे ही वैदिक सभ्यता अथवा आर्य के नाम से जाना जाता है। हमे इस काल की जानकारी मुख्यत: वेदों से प्राप्त होती है, जिसमे ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल (1500 -1000 ई.पु.) तथा उत्तर वैदिक काल (1000 – 600 ई.पु.) में बांटा गया है।
- सर्वप्रथम आर्य पंजाब और अफगानिस्तान में बसे थे. मध्य एशिया को मैक्समूलर ने आर्यों का निवास स्थान माना है. वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता कहलाई है. ग्रामीण सभ्यता आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता थी.
ऋग्वैदिककालीन देवता
देवता संबंध
इंद्र युद्ध का नेता और वर्षा का देवता
अग्नि मनुष्य के बीच मध्यस्थ और देवता
द्यौ आकाश का देवता (सबसे प्राचीन)
सोम आकाश वनस्पति देवता
वरुण समुद्र का देवता, पृथ्वी और सूर्य के निर्माता, विश्व के नियामक एवं
शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता
आश्विन विपत्तियों को हरनेवाले देवता
पूषन पशुओं का देवता
उषा प्रगति एवं उत्थान देवता
विष्णु विश्व के संरक्षक और पालनकर्ता
मरुत आंधी-तूफान का देवता
- संस्कृत भाषा आर्यों की भाषा थी.
- पांच भागों में बंटी थी आर्यों की प्रशासनिक इकाई. (i) कुल (ii) ग्राम (iii) विश (iv) जन (iv) राष्ट्र.
- राजतंत्रात्मक प्रणाली वैदिक काल में प्रचलित थी.
- ग्राम के मुखिया ग्रामीणी और विश का प्रधान विशपति कहलाता था. राजन जन के शासक को कहा जाता था. पुरोहित और सेनानी राज्याधिकारियों में प्रमुख थे.
- राजा शासन का प्रमुख होता था. राजा वंशानुगत तो होता था लेकिन उसे जनता हटा सकती थी. वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था.
- युद्ध का राजा नेतृत्वकर्ता था. कर वसूलने का उसे अधिकार नहीं था. जो देती जनता अपनी इच्छा से देती थी, राजा उसी से खर्च चलाता था.
- राजा का प्रशासनिक सहयोग पुरोहित और सेनानी 12 रत्निन करते थे. वाज्रपति चारागाह के प्रधान को और लड़ाकू दलों के प्रधान को ग्रामिणी कहा जाता था.
- 12 रत्निन इस प्रकार थे: सेनानी- सेना का प्रमुख, ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी, महिषी- राजा की पत्नी, सूत- राजा का सारथी, क्षत्रि- प्रतिहार, संग्रहित- कोषाध्यक्ष, भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी, पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता, अक्षवाप- लेखाधिकारी, गोविकृत- वन का अधिकारी, पालागल- राजा का मित्र.
- पुरूप, दुर्गपति और स्पर्श, जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे.
- -गोचर भूमि का अधिकारी होता था. – वाजपति
- अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था. -उग्र
- राजा को सलाह देने वाली संस्था सभा और समिति थी.
- सभा श्रेष्ठ और संभ्रात लोगों की संस्था थी, जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी और सबसे प्राचीन संस्था विदथ थी. सबसे ज्यादा विदथ का 122 बार ऋग्वेद में जिक्र हुआ है.
- विदथ में पुरूष और स्त्री दोनों सम्मलित होते थे. विदथ मेंनववधुओं का स्वागत, धार्मिक अनुष्ठान जैसे सामाजिक कार्य होते थे.
- सभा और समिति को अथर्ववेद में प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है. राजा का चुनाव करना समिति का महत्वपूर्ण कार्य था. ईशान या पति समिति का प्रधान कहलाता था.
- अलग-अलग विशेषज्ञ के अलग-अलग क्षेत्रों थे. उदगात्री- सामवेद की रिचाओं का गान करने वाला, अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने वाला, रिवींध- संपूर्ण यज्ञों की देख-रेख करने वाला और होत्री- ऋग्वेद का पाठ करने वाला.
- राजा युद्ध में कबीले का नेतृत्वथा, युद्ध के गविष्ठ शब्द का इस्तेमाल किया जाता था जिसका अर्थ गायों की खोज होता है.
- ऋग्वेद के सातवें मंडल में दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख है, यह युद्ध सुदास और दस जनों के बीच रावी नदी के तट परलड़ा गया था. जिसमें सुदास जीते थे.
- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में ऋग्वैदिक समाज विभाजित था. व्यवसाय पर यह विभाजन आधारित था. ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जांघों से और शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं, ऋग्वेद के 10वें मंडल में कहा गया है.
प्रमुख दर्शन एवं उसके प्रवर्तक
दर्शन प्रवर्तक
चार्वाक चार्वाक
सांख्य कपिल
योग पतंजलि
न्याय गौतम
पूर्वमीमांसा जैमिनी
वैशेषिक उलूम या कणाक
उत्तरमीमांसा बादरायण
- ‘ पणियों ‘ का एक और वर्ग था. जो व्यापार करते थे और धनि थे.
- कृषि दासों और भिखारियों अस्तित्व नहीं था. गाय संपत्ति की इकाई थी, जो विनिमय का माध्यम भी थी. विशेष सम्मान सारथी और बढ़ई समुदाय को प्राप्त था.
- पितृप्रधान आर्यों का समाज था. परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई थी, जिसका मुखिया पिता होता था जिसे कुलप कहते थे.
- इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में महिलाएं भाग लेती थीं.
- इस काल में बाल विवाह और पर्दाप्रथा का प्रचलन नहीं था.
- अपने पति के छोटे भाई से विधवा विवाह कर सकती थी. महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग गन्धर्व गन्धर्व और अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था.
- ऋग्वेद में घोषा, अपाला, विश्वास जैसी विदुषी महिलाओं को वर्णन है. महिलाएं पढ़ाई कर सकती थीं.
- अमाजू जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को कहा जाता था.
- सोमरस आर्यों का मुख्य पेय था. जो वनस्पति से बनाया जाता था.
- तीन तरह के कपड़ों का आर्य इस्तेमाल करते थे.
(i) वास
(ii) अधिवास
(iii) उष्षणीय
(iv) निवि अंदर पहनने वाले कपड़ों को कहा जाता था.
संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ आर्यों के मनोरंजन के साधन थे.
- खेती और पशुपालन आर्यों का मुख्य व्यवसाय था.
- न मारे जाने पशु की श्रेणी में गाय को रखा गया था.
- मृत्युदंड या देश से निकाला की सजा गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के खिलाफ थी.
ऋग्वैदिककालीन नदियां
प्राचीन नाम आधुनिक नाम्
कुभा काबुल
क्रुभ कुर्रम
आस्किनी चिनाव
परुषणी रावी
वितस्ता झेलम
शतुद्रि सतलज
सदानीरा गंडक
विपाशा व्यास
दृसद्धती घग्घर
गोमल गोमती
सुवस्तु स्वात्
- आर्यों के प्रिय पशु घोड़ा और इंद्र देवता थे.
- लोहा आर्यों द्वारा खोजी गई धातु थी.
- ‘पणि’ व्यापार के दूर-दूर जाने वाले व्यक्ति को कहा जाता था.
- लेन-देन में वस्तु-विनिमय प्रणाली मौजूद थी.
- ‘सूदखोर’ ऋण देकर ब्याज देने वाले को कहा जाता था.
- सरस्वती सभी नदियों में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र नदी मानी जाती थी.
- प्रजापति उत्तरवैदिक काल में प्रिय देवता बन गए थे.
- उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होते थे.
- हल को सीरा और हल रेखा को सीता उत्तरवैदिक काल में कहा जाता था.
- निष्क और शतमान मु्द्रा की उत्तरवैदिक काल में इकाइयां थीं.
- भारत के सभी दर्शनों में सबसे पुराना सांख्य दर्शन था. इसके अनुसार मूल तत्व 25 हैं, जिनमें पहला तत्व प्रकृति है.
- मुण्डकोपनिषद् से ,सत्यमेव जयते लिया गया है.
- सविता नामक देवता को गायत्री मंत्र संबोधित है जिसका संबंध ऋग्वेद से है.
- पहली बार पक्की ईंटों का इस्तेमाल उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में हुआ था.
- दो महाकाव्य है- महाभारत और रामायण.
- जयसंहिता महाभारत का पुराना नाम है यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है.
- चारों आश्रम ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम का उल्लेखसर्वप्रथम ‘जाबालोपनिषद ‘ में मिलता है.
- उत्तर वैदिक काल में गोत्र नामक संस्था का जन्म हुआ.
- धातुओं में सबसे पहले तांबे या कांसे का जिक्र ऋग्वेद में किया गया है. वे सोना और चांदी से भी परिचित थे. लेकिन लोहे का जिक्र ऋग्वेद में नहीं है.
- इंद्र, अग्नि, वरुण, सोम, सविता, सूर्य, मरुत, विष्णु, पर्जन्य, ऊष्मा आदि 11 देवता ऋग्वैदिक देवताओं में प्रमुख है।
- ऋग्वेद में सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र को ‘पुरुन्दर’ भी कहा गया है। वर्षा का देवता भी माना गया है। ऋग्वेद में इंद्र की स्तुति में 250 सूक्त है। रथेष्ट, विजयेन्द्र, सोमपाल, शतक्रतु, वृत्रहन एवं मधवा भी इंद्र को कहा जाता है
- अग्नि ऋग्वेद के दूसरे महत्वपूर्ण देवता है। वे देवताओं और मनुष्य के बीच मध्यस्थ थे।
- उ नकी स्तुति में 200 सूक्त मिलते है।
- वरुण देवता तीसरे प्रमुख देवता थे, जो जलनिधि का प्रतिनिधित्व करते थे। ऋतस्य गोपा’ अर्थात प्रकृतिक घटनाक्रम का संयोजक तथा ‘असुर’ वरुण को कहा गया है।
- समस्त जन द्वारा दी गई बलि अर्थात शाक, जौ आदि वस्तुएँ ग्रहण करने के लिए इन्द्र और अग्नि आहूत होते थे।
- ऋग्वेद में ‘गायत्री मंत्र’ उलिलखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र है इसके रचनाकार विश्वामित्र है, यह सवितृ (सूर्य) देवता को समर्पित है
- त्रिग्वेद में आर्य निवास-स्थल के लिए सप्तसैंधव क्षेत्र का उल्लेख मिलता है, जिसका अर्थ है- सात नदियों का क्षेत्र। इन सात नदियों की पहचान के संदर्भ में विद्वानों में मतभेद है, फिर भी यह माना जा सकता है कि ‘सप्तसैंधव’ आधुनिक पंजाब के विस्तृत भूखंड को कहा गया है।
- आर्यो का विस्तार अफगानिस्तान, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था, त्रिग्वेद से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘ब्रहावर्त’ सतलुज से यमुना नदी तक का क्षेत्र कहलाता था जिसे ऋग्वैदिक सभ्यता का केंद्र माना जाता था।
ऋग्वैदिक आर्यो की पूर्वी सीमा हिमालय और तिब्बत, उत्तर में वर्तमान तुर्कमेनिस्तान, पश्चिम में अफगानिस्तान तथा दक्षिण में अरावली तक विस्तृत थी।